परिचय

परिचय

भारतवर्ष के पूर्वी हिस्से में बिहार के दक्षिणी तथा बंगाल के पश्चिम में अवस्थित पठारी भू- भाग झारखण्ड के नाम से जाना जाता है । पहले यह दक्षिण बिहार के नाम से जाना जाता था, किन्तु १५ नवंबर २००० को ऐसे भारत गणराज्य का २८वां राज्य बना दिया गया है ।

ऐसा मन जाता है कि लगभग २०,००० साल पहले धरती का यह भू-भाग अत्यंत घने और दुर्गम वनों से घिरा हुआ था । इन्हीं जंगलों में कवी होमो- सैपियन एवं होमो- इरेक्टस के रूप में आदिमानव वास करता होगा ।

उस समय मानव शिकार एवं खाद्य पर आश्रित रहा होगा । पुरातात्विक दृष्टिकोण से पाषाण काल के तीन चरणों सहित, नव पाषाण युग तथा ताम्रशाम युग के अवशेष झारखण्ड  में बहुत पाए जाते हैं  । महाश्मिये संस्कृति के अवशेष न सिर्फ यहाँ पाए जाते हैं, बल्कि इस संस्कृति के विशेष लक्षण मुंडा-उराँव जनजाति में आज भी पाए जाते हैं । ऐतेहासिक काल के अवशेषों में मौर्या- कुषाण एवं गुप्त काल में लगभग १०वीं-१२वीं शताब्दी में अनेक मंदिरों एवं अन्य भवनों का निर्माण इस क्षेत्र में बहुतायत से हुआ है । हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध, जैन, धर्म तथा ऐसे एवं इस्लामिक धर्मों से सम्बंधित बहुत से भवनों के अवशेष पूरे राज्य में बिखरे पड़े हैं  । मुग़ल एवं अंग्रेज काल में भी यह  क्षेत्र देश की मुख्यधारा में अपनी उपस्थित दर्ज कराता रहा ।

राज्य के सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण, पदोन्नति और विकास में कला और संस्कृति निदेशालय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम कल्याण की दिशा में कार्यक्रमों को लागू करने और कलाकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करके नई योजनाएं / गतिविधियों की शुरुआत करते हैं| इसका उद्देश्य लोगों के बीच बुनियादी और सांस्कृतिक मूल्यों और धारणाएं सक्रिय और गतिशील रहने के तरीके और साधनों का विकास करना है। हम कला और संस्कृति के क्षेत्र में कलाकारों और आम जनता के लिए उचित बुनियादी ढांचे को भी स्थापित करते हैं। हमारी कला और संस्कृति हमारे इतिहास और आज की दुनिया में हमारी पहचान का मिश्रण है।

कला सौंदर्य, आनंद  एवं प्यार के  साथ न्याय गरिमा और प्रतिरोध को भी व्यक्त कर सकता है। कला का उद्देश्य भावनाओं, अनुभवों और विचारों को व्यक्त करना है जो भाषा की पहुंच से बाहर हैं।

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