भित्ति चित्र
आदिकाल से ही चित्रों की धरातल भूमि, चटूटान और गुफाओं की दीवारें रही हैं। इसी चित्रण पर परंपरा का निर्वाह आज तक विभिन्न रूपों में जीवित है। विश्व एवं देश का कोई कोना जहाँ जनजातियों का निवास है, भित्ति चित्रण और भूति अंकन प्रथा से वंचित नहीं है, जिसका उद्देश्य धर्म, जादू-टोना , कोई सामाजिक प्रसंग, मानवीय आकांक्षाएँ, विभिन्न प्रकार के पर्व, दैनिक जीवन तथा फूल-पत्तियाँ, जीव-जन्तु आदि हैं। इन्हीं उघेश्य से प्रेरित जनजाति अपने घरों की दीवारों को चित्रित करते रहे है जिसमें कुछ अंकन केवल सजावट और सुन्दरता के लिए भी होता रहा है। हजारीबाग जिले की इसको स्थित गुफाओं में पाषाणकालीन चित्रांकन पाए गए है। यह महज संयोग की बात नहीं है कि पूरे झारखंड क्षेत्र में आज भी हजारीबाग के क्षेत्र में ही घरों की दीवारों यर चित्रांकन की कला सबसे आकर्षक एवं सबसे अधिक लोकप्रिय है । यदि शोध किया जाए तो सोहराई कला में विकास क्रम का निर्धारण संभव हो सकता है । कोहबर चित्रकला जनजाति महिलाओं की कृति है जो मुख्यत: जनवरी से जून माह के बीच विवाह-उत्सवों के दौरान घर की दीवारों पर चित्रित की जाती है। झारखंड राज्य में इन भित्ति चित्रों के अतिरिक्त चित्रकला को एक अन्य शैली भी प्रचलित है जिसे जादोपटिया के नाम से जानते हैं। वैसे तो यह राज्य के सभी हिस्सों में कमोबेशा पाया जाता है किन्तु संतालपरगना क्षेत्र में यह अधिक प्रचलित है । जादोपटिया लम्बवत्पप्रचित्र (स्कोल पेटिरा) है, जो संतालपरगना के जानजाति के सदस्यों द्वारा बनाई जाती रहीं है ।