मृण शिल्प
झारखण्ड के जनजीवन में संगीत नृत्य का अत्यंत महत्तव है | इस छेत्र के सामाजिक जीवन के विषय में एक लोकोक्ति बहुत प्रसिद्धि है की यहाँ चलना ही नृत्य है और बोलना ही संगीत है | प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों का प्रचलन झारखण्ड छेत्र में होता आ रहा है | यहाँ के निवासी पर्व - त्यौहार, विवाह,पूजा आदि विभिन्न अवसरों पैर होने वाले नृत्य- गीतों में वाद्यों का भरपूर उपयोग करते है जो स्थानीय तौर पैर बनाये भी जाते है | वस्तुतः नृत्य - गीत , संगीत एवं वाद्य - वादन झारखण्ड वाशियों का प्राण है, जो स्वाभाविक रूप से इन लोगों के अंत कारन से स्पंदित होकर प्रस्फुटित होता है | यहाँ के प्रमुख लोक वाद्यों में केन्द्रा, टोहिला, भुआंग , बांसुरी,सानाई, नगाड़ा, मांदर,धमसा, आदि अनेक वाद्य यन्त्र है |