कडसा (उरावं)
आदिवासियों में आग्नेय परिवार के उपरांत द्रविड़ परिवारों में उरावों का स्थान झारखण्ड में महतवपूर्ण है | उरावं समाज बेहद संगीतप्रिय होता है | इनके नृत्य संगीत की विविधता देखते ही बनती है | इनकी कलात्मकता से तुलनात्मक रूप में शायद ही कोई सुंदरता और मधुरता से मन अखरा चढ़ने के लिए उतावला हो जाता है| मंदार, नगाड़ा, ढेचाका, घंटी, तिरिओयो इनके लोकप्रिय वाद्य है| उरावों के नृत्य भी वर्ष भर हर्सोउल्लाश से चलते रहते है | इनके बिना तो यह जीने की कल्पना ही नहीं कर सकते | इनके कुल गीतों में न तो वाद्य होते है न नृत्य | उरावं समाज में कुरुख गीतों क अतिरिक्त नागपुरी (सदरी) गीतों की भी भरमार है | धर्मदास लाकर के उरावं लोकगीतों के संकलन इसके प्रम्माण है | अनेक विवाह शादी में नेगचार के गीत कुरुख के अतिरिक्त नागपुरी में भी है | सदनों का प्रभाव उरावं तथा खारिया समाज के लोग साथ रह रहे है वह भी इतिहास के अज्ञात काल से | परिणामतः इनके नृत्य संगीत का एक दूसरे से प्रभावित होना स्वाभाविक ही है | इसमें भी महिलाएं हाथों की विभिन्न िस्थितियों से एक करि में जुड़ी हुई नृत्य करती है | पुरुष भी इनमे सम्मलित हो जाते है | इनके पद सञ्चालन की प्रक्रिया भी कलात्मक और विविधता होती है | दो - दो कदम पीछे तीव्रता से लौटने की क्रिया कुरुख नृत्य में टोटकाना तथा आगे की और बढ़ने की क्रिया लंगड़ाना कहा जाता है | इसमें भी महिलाएं या जुड़ने वाले हांथो को हाथ से कमर से कंधे से पकड़े हुए जुड़े कतार बनाते है | उसे जोड़ना खा जाता है | मंदार वादक के ताल और नृत्य का बहुत महत्तव रहता है | अब तो इनके समाज में महिलाएं भी मंदार आदि बजने लगी है | इनका प्रभाव दूसरों पैर भी पड़ा है | उरावं क नृत्य है - फग्गू खद्दी, जादिरा, धुरिया , जेठवारी, रोपा ,छेछ|डी , धरधड़िया , करम, तुसगो डोमकच ,झूमर आदि |