राज्य के प्रमुख धरोहर
झारखण्ड के हर जिले में अनेक पुरातात्विक स्थल, ऐतिहासिक स्मारक देखने को मिलते हैं। इनके सम्बन्ध में 18वों शताब्दी से ही जे . डी. बेगलर, एलेकजेंडर कनिंघम आदि जैसे विद्वान खोज बीन करते रहैं हैं। डॉ.एस.सी. रॉय ने भी इस दिशा में काफी काम किया हैं। इन विद्वानों एल भारतीय पुरातत्व सर्वक्षज्जा कलकत्ता विश्वविद्यालय, के पी. जायसवाल शोध संस्थान तथा बिहार सरकार का पुरातत्व एल संग्रहालय निदेशालय आदि जैसी संस्थाएँ वर्तमान के झारखण्ड की भौगोलिक सीमाओं में पूर्व में अनवरत रूप से पुरस्तात्विक अन्वेषणा करती रही हैं। पिछली शताब्दी में वर्ष 1963 में श्री डी. आर. पाटिल ने " एन्टिवस्नेरियन रिमेंन्स आँफ बिहार " नामक एक पुस्तक का प्रकाशन किया जिसमें उस समय तक विहार (आज़ के झारखण्ड सहित) में खोजे जा सकै लगभग 500 पुरातात्विक स्थलों को संक्षिप्त वर्णन सहित सूचीबद्ध किया गया था । श्री पाटिल उन दिनों ओरंगबाद (महाराष्ट्र) सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वबिदू थे। उनकी यह कृति बिहार-झारखण्ड में पृरातात्विक अन्वेषणरें का प्रमुख आधार मानी जाती हैं। पिछले एक दो वषों में झारखण्ड में भी कुछ पुरातत्वज्ञों न अपनी खोजों के आधार पर कुछ पुस्तके प्रकाशित कराईं है, जिनसे पुरातात्विक स्थलों की सूची तो प्राप्त होती है पर उनमें इन स्थलों की वैज्ञानिक पुरातात्विक समीक्षा सामान्यत: गौण हैं। अत : ऐसे गैर-तकनीक्री लेखकों की कृतियों से भी हमें कम से कम पुरातात्विक स्थलों की जानकारिया तो प्राप्त होती ही है, जो स्वागत योग्य है । झारखण्ड राज्य की स्थापना के पश्चात् कला संस्कृति विभाग के पदाधिकारी डॉ. हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा द्वारा पूरे राज्य में अनवरत रुप से पुरस्तात्विक अन्वेषणों के माध्यम से अनेक ऐसे स्थल प्रकाश में लाये गये है, जिनके बारे में पूर्व में जानकारी नहीं थी। अत : यहाँ मुख्यत: ऐसे ही स्थलों की चर्चा की गई है जो या तो पूर्व में प्रतिवेदित नहीं थे, या उनका समीक्षात्मक वर्णन उपलब्ध नहीं था ।