घोड़ा नाच
यह अवसर विशेष मेलों, त्योहारों, उत्सवों एवं बारात के स्वागत के समय का आकर्षक गीतविहीन नृत्य है। इसमें शहनाई, थेइर, नरसिंधा, नगाड़ा, ढाक, ढोलक, मात्र आदि का उपयोग होता है। बसि की पहियों से बिना पैर के घोडे का आकार तैयार किया जाता है। बैठने के स्थान पर तैयार किये गये छिद्र में नर्तक इस तरह खड़। रहता है कि लगे वह घोड़े पर सवार है। इस कृत्रिम हल्दी घोडे के फ्रेम को रंगीन झालदार कपड़े से सजा दिया जाता है जो नीचे दिख रहे नर्तक के पैर को छिपा देता है। घोड़। नर्तक अपने पद संचालन से घोडे के दौड़ने, भटकने, घूमने, उछलने, नाचने का उद्यम करता है।