नाटक
नाटक तथा रंगमंच के इतिहास में 18 अक्टुबर 1946 का दिन राँची के लिए एक ऐतिहासिक दिवस था। राधाकृष्ण द्वारा लिखित पूर्णकालिक नाटक भारत छोड़ो का मंचन इस दिन किया गया था। भारत छोड़ों की भूमिका में राधाकृष्ण ने स्वयं इसका उल्लेख किया है- 18 अक्टुबर 1946 को यह नाटक खेला गया। नाट्य निकेतन नामक एक संस्था का उदय भी संभवतः 1962 में अपर बाजार में हुआ, पर इसके द्वारा भी चाँदी का जुता नाटक की प्रस्तुती के बाद कुछ विशेष नहीं किया जा सका। विद्याभूषण ने एक नाटक मंडली बनायी- कला केन्द्र। इसने विनोद रस्तोगी के नाटक आजादी के बाद तथा कुछ अन्य नाटकों को भी मंच पर प्रस्तुत किया। कालीपद सरकार मुख्यतः प्रहसनों का ही प्रदर्शन करते थे। वर्ष 1969 में कशेश्वर ठाकुर लिखित नाटक नौकरी की तलाश (निदेशक-बलदेव नारायण ठाकुर) की सफलता से राँची में नाटक तथा रंगमंच के क्षेत्र में एक नयी चेतना तथा उत्साह का संचार हुआ। बलदेव नारायण ठाकुर की रंगशाला ने अनन्त सहाय के सहयोग से कई कलाकारों को जन्म दिया जिनमें अशोक पागल, ईश्वर लाल, राज प्रिय, गुलशन सलूजा (स्व.), सुरेश वर्मा आदि प्रमुख हैं। इसका सुपरिणाम यह हुआ कि सन् 1972 के अन्त में हस्ताक्षर नामक एक संस्था का प्रादुर्भाव हुआ। इस संस्था की प्रथम प्रस्तुति (16 सितम्बर 1973) थी। - अदालत। इस नाटक के लेखक थे कुशेश्वर ठाकुर और निर्देशक थे ईश्वर लाल राजप्रिय। हस्ताक्षर की दूसरी प्रस्तुति थी शैलेन्द्र अग्रवाल (बच्चा बाबु) द्वारा लिखित तथा अभिनीत नाटक - गेहूँ के दाने। इन दो प्रस्तुतियों के बाद हस्ताक्षर राँची की एक प्रमुख नाट्य संस्था बन गयी। इस संस्था को प्रारम्भिक स्तर पर सप्राण बनाने एवं क्रियाशील करने में कुशेश्वर ठाकुर, ईश्वर लाल राजप्रिय, अशोक पागल शिशिर पंडित, नरेश, विश्वनाथ, सुशील कुमार अंकन आदि का प्रमुख योगदान रहा।