पकवान
जल , जंगल, ज़मीन - ये तीनो चीजें झारखण्ड के आदिवासी जनजातियों कोई धरोहर है | यही इनकी पहचान है | इनकी जीवन - शैली और इनकी संस्कृति के ये अभिन्न अंग है | यही इनके अस्तित्व को जीवन प्रदान करती है | प्रकृति की गोद में पालनेवाले ये लोग प्रकृति से ही अपनी जरूरतों की पूर्ति करते है | सदियों से इनका पेशा खेती रहा है |खेतों में मुख्यतः धान , मरुआ , गोंदली , मकई ,गंगाई , उरद , चना , जटंगि, सुरगुज्जा , मूंगफली और शक्करकंद की खेती की जाती है | समय - समय पैर जंगल के कुछ फल - फूल और कंदमूल भी इनके भोजन सामग्री बनते है | पर्व - त्यौहार मानव समाज के अभिन्न अंग है | आदिवासी समाज भी इनसे अछूते नहीं है | पर्व - त्यौहार का मतलब ही है अपने परमात्मा की पूजा करना और कुछ विशेष पकवान है | आदिवासी एवं सदान घरों में बनानेवाले कुछ पारम्परिक स्वादिस्ट पकवानो की चर्चा निम्नवत है :- धुसका: आदिवासी घरों में धुसका का काफी प्रचलन है | बनाने की विधि : ३ पाव अरवा चावल और १ पाव उरद (धोकर छिलका उतारा हुआ ) अलग - अलग बर्तन में रात भर भिगों दें | सुबह पीसकर मिला दें | सुबह पीसकर मिला दें | गाढ़े घोल में स्वाद अनुसार नमक मिलकर कढ़ाई के गर्म सरसों या सरगुज्जा तेल में कलछुल या छोटी कटोरी से थोड़ा घोल डालें | उलट - पुलट कर पकाएं | धुसका का स्वाद अपने आप में ही काफी निलारा है | पैर यदि साथ में मुर्गा , खस्सी या कोई मसालेदार सब्जी हो तो इसका स्वाद काफी बढ़ जाता है | देहात के आदिवासी में रोटी क नाम पर इसी रोटी का प्रचलन है | बनाने की विधि : अरवा चावल रात भर भिगो कर पीस ले , स्वादानुसार नमक मिला दें और घोल को थोड़ा पतला रखें | अब सखुआ पत्ते को चार बार मोरकर एक तिनके से टिप दें | चूल्हे पर तवा चढ़कर पत्ते से थोड़ा तेल तवे पर मले| अब एक छोटी कटोरी घोल लेकर तवे पर डेल और उसी कटोरी से उसे रोटी का आकार में फैला दें |फिर ढक्कन लगा दें | थोड़ी देर बाद ढक्कन हटाकर रोटी को उलट दें | इसे आप सब्जी या मांस - मछली के साथ खा सकते है | बनाने की विधि :१ किलो अरवा चावल और एक मुट्ठी उरद ,(छिलका उतारकर) अलग - अलग रात भर भिगो दें | सुबह दोनों को पीसकर उसमें स्वाद अनुसार नमक मिलकर फेंट ले |कढ़ाई में सरसों या सरगुज्जा तेल गर्म करे और दुभनी से एक दुभनी घोल तेल में डालें | कुछ देर बाद हंसुआ और इसके बिच में छेद कर दें | इससे बिच का हिस्सा अच्छी तरह पाक जायेगा | उलट - पलट कर पका लें | बनाने की विधि : अरवा चावल डेढ़ - दो घंटे पानी में भिगोकर चल लें | जब उसका पानी निकल जाये तो उसे ऊखल या ढेंकी में कूटकर गुड़ी तैयार करें | पानी गर्म करें | हल्का गर्म होने पर उसमे गुड़ी डालकर चलाते रहें , जबतक की करा घोल तैयार न हो जाये | थोड़ा नमक भी दाल दें | अब चूल्हे से उतार लें | सखुआ या रामदातुं के पत्ते के आधे भाग में थोड़ा करा घोल तैयार न हो जाये | थोड़ा नमक भी दाल दें | अब चूल्हे से उतार लें | सखुआ या रामदातुं के पत्ते के आधे भाग में थोड़ा करा घोल फैला दें | पत्ते के दूसरे भाग को मोड़कर उसे बांस के तिनके से टिप कर बंद कर दें | एक बड़े मुँह के घड़े में कुछ पानी डालकर गर्म करें | पानी के ऊपर दतवन को आड़े- तिरछे सजा दें| दतवन के ऊपर कुछ साफ़ पुवाल फैला दें | पुवाल के ऊपर घोल के साथ टीपे हुए पत्ते को तह पर तह करके रख दें | ऊपर से ढक्कन डाल दें | पानी गर्म होने पर भाप बनेगा और उसी भाप से पत्ते में राखी रोटी पकेगी | कुछ समय बाद जब रोटी पाक जाये तब उसे बहार निकालें | पत्ता हटाकर रोटी का स्वाद लें | बनाने की विधि : अरवा चावल की गुड़ी को गर्म पानी में डाल कर चांर लें | चूल्हे से उतर कर उसकी छोटी - छोटी लोई को दिया या कटोरी के आकर में बना लें | भींगे उरद डाल में नमक , मिर्च , अधरक , लहसुन , डालकर पीस लें | इसे गुड़ी के दिया या कटोरी में डाल कर मुँह बंद कर दें | अब इसे भाप में पकने के लिए बड़े मुँह के घड़े में पानी गर्म करे | ऊपर आड़े - तिरछे दतवन डाल कर थोड़ा पुवाल या पत्ता रख दें | उसके ऊपर डाल भरा पीठा तह कर तह लगा क्र रख दें | ऊपर से दक्कन डाल दें | कुछ देर बाद उसे घड़े से निकल लें | यह पकवान खाने में काफी स्वादिष्ट होता है | बनाने की विधि : मड़रुआ साफ़ कर उसे जनता में सूखा पीस लें | गुड़ी में पानी डालकर पतला घोल बना लें | स्वाद के लिए उसमे थोड़ा नमक और थोड़ा मांड डालें | अब तवा में सखुआ के पत्ते से थोड़ा तेल फैलाइये| छोटी कटोरी से मड़रुआ घोल तवे पर फैलाइये| उसे ढक्कन से ढँक दें | थोड़ी देर में पलट दें | मड़रुआ रोटी अकेले भी काफी स्वादिष्ट होती है पर यदि सब्जी के साथ हो तो इसके स्वाद का कहना ही क्या ? बस कहते रहिये एक के बाद दूसरी , दूसरी के बाद तीसरी और तीसरी के बाद चौथी भी काम पर जायेगा | बनाने की विधि : मड़रुआ गुड़ी का , ठंडा या सुसुम पानी मिलकर, गधा घोल तैयार करे | स्वाद अनुसार नमक मिला दें | तवा गर्म कर उसमे सखुआ के पत्ते से तेल फैलाएं | अब मड़रुआ को थोड़ा गाढ़ा घोल डाल कर ऊँगली से रोटी का आकर दें | थोड़ी देर बाद उसे उलट कर पकाएं | कुछ ठपोया रोटी बना लें | सुरगुज्जा के बिच को सूखा भूनकर ओखल में कुंट लें अब मड़रुआ का ठपोया रोटी और थोड़ा सुरगुज्जा (पिसा हुआ) साथ में ओखल में कूट लें | निकल कर खाएं | स्वाद में लट्टाः भी लाजवाब है |चावल से बने पकवान
चिरका या छिलका रोटी :
दुभनी रोटी :
चावल का धुत्तु:
पीठा
मड़रुआ से बने पकवान
मड़रुआ का छिरका/ छिलका रोटी :
थपाया रोटी :
लट्टाः
बनाने की विधि :