फगुआ
यह फाल्गुन और चैत के संधिकाल का नृत्य है। फाल्गुन चढ़ते ही फगुआ नृत्य की तैयारी आरंभ हो जाती है। यह वसंत उत्सव या होली के अवसर का नृत्य है। प्रकृति के उल्लास के साथ रंग में रंग मिलने का नृत्य है । यह पुरुष प्रधान नृत्य है। इसमें कहीं-कहीं या अधिक कली (नर्तकी) सम्मिलित रहती हैं। ये स्वतंत्र रूप से पुरुषों के मध्य भाव हैं लय, ताल एवं राग के अनुरूप नृत्य करती है । नृत्य की मुश इसी पर आधारित रहती है। कली/स्रोलह श्रृंगार करती है । गायनाहा (गाने वाले) बजनिया (बजाने वाले) तथा पुरुष नर्त्तक कली को अगल-बगल से घेर का नृत्य करते हैं। इस नृत्य के प्रमुख वाद्य शहनाई, जारी, मुरली, ढोल, नगाड्रा, ढाँक, करह और मांदर है।