आभूषण

आभूषण

गोदना
सदान महिलाओं में खोदा खोदवाने की प्राचीन परम्परा रही है। ये अपने शरीर के प्रायः सभी अंगों में गोदना गुदवाती थी। गोदना में जो चित्र उकेरे जाते थे उन सब के अलग-अलग नाम थे जैसेः- महादेव जँठ, पोथी, कसैली फूल, बंुदा गेरिया, चावल, धाइर, चरई  गोड़ आदि। गला में हँसली, हैकल, हाथ मे ंबाजू, अगुवा, पछुआ, लुलवा में कसैली फूल, पोथी, अंगुली में बुंदा, पांव में पंयरी, पायल आदि की आकृति बनवाती थी। खोदा मलारिन महिलाएँ खोदती हैं। ये जल्दी खोदा सुखने के लिए हल्दी तेल लगाती थीं और तीन शाम दूब घांस में झाड़ती थीं और वह ठीक हो जाता था।


सिर में पहने जानेवाले आभूषण

head
खोंगसोः- यह चांदी का बना जूड़ा को संभाल के रखने के लिए उपयोगी होता है। इसे कलात्मक जूड़ा बनाने में प्रयोग किया जाता है। जैसा कि नाम से प्रतीत होता है बाल में खोंसने के कारण इसका नाम खोंगसो पड़ा।
चवनी वाला और पानपत्ता खोंगसोः- चांदी के इस खोंगसो में उपर की ओर चांदी की चवनी, कौड़ी जड़ा होता है। किसी-किसी में चवनी के स्थान पर सिकड़ी में घुंघरू लगा होता है। पानपत्ता खोंगसो में पान पत्ता की आकृति बना रहता है और उसमें तीन तरह सिकड़ी और उसी में घुंघरू लगे होते हैं जो जूड़े की खूबसूरती को बढ़ा देता है।

कलीपः-यह विभिन्न डिजाइनों में चांदी का बना होता है। क्लीप में नीचे की ओर घुंघरू एक पतला सिकड़ी, जो दोनों क्लीपों को जोड़े रखता है। इसे कान के उपर बालों में लगाया जाता है।


कान में पहनने वाले आभूषण

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प्रारम्भ में खइरका, ताड़पत्ते, खजूर, पत्ते, सखुआ पत्ते, बांदा लतर, गंगई डंठल, गुलैची लकड़ी आदि से आभूषण बनते थे जिसे काले रंग से रंग दिया जाता था।
करंजफूलः- यह कान में पहने जाने वाले सोना, चांदी से बनते हैं। बीच मेें गोल दाना उसक किनारे दो धारी सोने के तार से घेरा दिया हुआ, फिर उठे हुए पत्ते जैसे और बीच-बीच में छोटा बुंदा होता है। जो देखने में आकर्षक होता है। आज भी यह खूब चलता है।
कानपासाः- यह सोने, चांदी का बना पूरे कान को ढंकने वाला आभूषण है।इसमें नीचे पांच या सात गोल-गोल झुलकी लगा होता है। चांद, तारे, कमलफूल आदि इसमें उकेरे रहते हैं।
उपरकानाः- पुरूष भी दोनों कान के उपर में सोना या चांदी का उपरकाना पहनते थे।
बेसरीः- इसे नाक के बीच नीचे वाले हिस्से में पहना जाता है। यह सोना का गोल बीच मे ंचपटा, नक्कासीदार मुंह के उपर झुलने वाला, कोई बुलांक तो इतना बड़ा होता है पूरा मुंह ढक लेता है। खाना खाने के समय महिलाओं को एक हाथ से उसे उठाकर खाना पड़ता है।


गले में पहने जाने वाले गहने

hasuli
हँसलीः- यह सोना, चांदी, तांबे आदि का बना होता है। इसके बीच का भाग मोटा, नहीं मुढ़ने वाला, गला डालने वाला हिस्सा पतला मुढ़ा हुआ बना, विभिन्न डिजाइनों में फूल, मछली, शंख आदि बना होता हैं यह करीब आधा किलो का 40 भर चांदी रूपिया से बना होता है। चूंकि चांदी और वजनी होने के कारण बेचने से अच्छा दाम मिल जाता है एक तरह से यह इनकी पूंजी है।
खम्भीयाः- यह चांदी का ताबीज जैसे, मोड़ी बना होता है। जिसमें लाल, कालाधागा डालके, बीच-बीच में मुंगामाला दे के गुंथा रहता हैं चैकोर भाग में फूल, पत्ते, मोर आदि पक्षी का चित्र उकेरे हुए होते हैे।
सीताहारः- यह गले में पहनने वाला चांदी का पांच लाॅकेट वाला गला तरफ दो लर सिकड़ी लगा हुआ, उपर से नीचे की ओर सिकड़ी की संख्या और लाॅकेट का आकार बड़ा होते जाता है। इससे गले के सौन्दर्य में चार चांद लग जाता है।
कंठामालाः- यह चांदी का गोल-गोल अंदर से खोखला होता है। यह धागे में गुंथा कंठा के बीच-बीच में चार धारी लाल, नीला या काला छोआ मूंगा मुंथा होता है। धंसे हुए भाग में धागा, मूंथने की गोल कड़ी होती है।
चंद्रहारः- यह चांदी का बना, गले के दोनों ओर पान पत्ता आकृति में उकेरा हुआ जिसमें उपर कड़ी में दो लर सिकड़ी और नीचे तीन लर सिकड़ी होता है। देखने में आकर्षक एवं सुन्दर लगता है।


हाथ में पहनने वाले आभूषण

kangna
टाड़ः- यह चांदी का मोटा, गोल, नक्कासीदार, अंदर से खोखला, एक जगह खुला हुआ होता है। इसे सदान महिलाएं कोहनी से ठीक उपर पहनती हैं।
बाजूबंदः-यह चांदी का बना धागे में गुंथा हुआ जिसे बांह में बांधनी से बांधा जाता है। बंधनी में गांठ से उपर चांदी का गोल कसैलीनुमा लगा होता है और फूदना झूलते रहता है।
ठेलाः- यह पूरा गोल, चांदी का मोटा, खोखला, नक्कासीदार चूड़ी के पहले पहना जाता है। इसलिए इसे अगुवा कहा जाता है।
कंगनाः- यह सोना, चांदी का एक अंगुली चैड़ा, नक्कासीदार और अन्दर से लाह भरा हुआ होता है।
बेराः-पुरूष भी हाथों में तांबा, कांसा, पीतल, सोना, चांदी से बना बेरा पहनते हैं।
बहिंकलः-पुरूष भी बांह में चांदी, कांसा का बर्हिकल पहनते थे। यह लगभग महिलाओं के बाजूबंद की तरह होता है।


पैर में पहने जाने वाले आभूषण

payal
पँयरीः-यह कांसा, पीतल, चांदी का घुंघरू वाला या बिना घुंघरू के भी, कड़ा नौकानुमा होता है। इसे सीधे पैर में डाला जाता है। कहीं से भी खुलने के लिए कड़ी नहीं होता है। इसे बड़े तथा बच्चे दोनों पहनते हैं।
पायलः-चांदी का पायल विभिन्न डिजाइनों में यथा-आम्बा, अम्बा पतई, जौ मंजी, खीरा मंजी, कोबी पतई आदि बनता है। इसमें एक जगह कड़ी और उसमें घुंघरू लगा होता है।
गोड़ामः-यह चांदी गिलट का बना गोल, खोखला, बीच में मोटा, एक जगह खुलने वाला, पूरा बंद वाला भी होता है। इसके अन्दर बनजे के लिए धातु की गोली डाली हुई रहती है। यह नक्कासीदार होता है।
अंगुठाः- यह पैर की बड़ी अंगुली में पहनने वाला, कांसा, पीतल, लोहा, चांदी का गोल गोल प्लेन या फूलदान होता है।
झटीयाः- यह कांसा, पीतल, लोहा का गोल मोटा और पैर की तीन अंगुलियों में पहना जाता है।
कतरीः- यह कांसा, पीतल, लोहा का बना पतला गोल होता है इसे पैर की सबसे छोटी अंगुली में पहनते हैं।
बिछियाः- यह चांदी का बना, सभी अंगुलियों में पहने जाने वाला, मछली, पानपत्ता, शंख, फूल आदि डिजाइन का होता है।

 

 

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