मुखौटा शिल्प
झारखंड में सरायकेला-खरसावां क्षेत्र की छाऊ नृत्य शैली विश्व प्रसिद्ध है। छाऊ नृत्य में चेहरे पर मुखौटा लगाकर नृत्य करते हैं। ये मुखौटे अभिनीत किए जा रहे पात्र के चरित्र के आधार पर मिटूटी, कागज और कपडे से तैयार किए जाते हैं। इसे तैयार करने की प्रक्रिया दुरूह होती है। सर्वप्रथिम अशुद्धियों से गुप्त अर्थात् छानी हुईं मिटती से जिसे स्थानीय बोली में चिटामाटी कहते है चेहरे का अंगवार स्वरूप तैयार किया जाता हैं। फिर इस गीली मिटूटी के अंडाकर आकार में निश्चित स्थानों पर आँख, नाक, होठ एवं लुइडी बनाए जाते हैं। अब इस पर राख-पाउडर छिड़का जाता है। तदोपरति, लेई की सहायता से इस आकृति पर कागज, विशेषतया अखबार, की तीन-चार परतें चढाई जाती हैं। इसके ऊपर पतले सूती कपडे की एक परत चढ़।ईं जाती है, और इसके ऊपर पुन : कागज की एक परत चढ़। कर इसे सूखने के लिए रख दिया जाता है। कुछ सूख जाने पर इस यर चिटामाटी का घोल डालते हैं। इसके पश्चात् जब इसमें कुछ कड़ापन आने लगता है, तब नोगही (औजार) एवं छोटी करनी से आँख, नाक, आहि के आकारों की 'फिनिशिंग' की जाती है। नोनाडी अमरूद अथवा इमली आदि की " लकडी से बनाया जाता है। अंत में इसे विभिन्न रंगों से आवश्यकतानुसार रंगा जाता हैं। महाकाव्यों के पात्रों के चेहरे विभिन्न रंगों में रंग जाते हैं। शिव का चेहरा उजला, कृष्णा का आसमानी, पावॅती का गुलाबी, चन्द्रमा-उजाला, मयूर-गुलाबी अथवा नीला रंगा जाता है। मुखौटे बनाने का काम झारखंड में मात्र सरायकेला खासायों तथा सिंहभूम जिलों में ही होता है। ये मुखौटे रंग-बिरंगे, चित्ताकर्षक एवं जीवंत प्रतीत होते हैं।