छऊ
यह मुखौटा तथा बिना मुखौटे का पुरुष प्रधान नृत्य है | यह कथा नृत्य या गति नाट्य की तरह लोकनाट्य नृत्य है | कथा की मांग के अनुरूप लय, ताल , राग , नृत्य की गति को तीव्र , माद्धयम एवं धीमी करते है | इसमें भी आगे, पीछे, दाएं , बाएं, दृस्टि को झटके से मोड़ते, शरीर, पैर कम्पन्न लाते, कभी कलाबाजी करते ,घुलटते , कभी थरथराते , कभी चक्राकार घूमते,उठाते, बैठते पैरों को फेंकते नृत्य करते है | यह एकल और समूह में दोनों प्रकार से होता है | सहरुल के उपरांत जेठ माह तक छऊ नृत्य चलता रहता है |