अवनद्ध वाद्य
झारखण्डी संगीत वाद्यों में अबनद्ध या चमड़। निर्मित वाद्यो की संख्या सबसे अधिकहै। विविध प्रकार के चर्म वाद्यों का प्रचलन यहाँ आम रूप से देखा जा सकता है। मादर या मादल, ढोल, ढाक,धमसा ( धोषा ) नगाड़ा, कारहा, तासा, जुडी-नागरा, विषम…ढाकी, ढप चांगू आदि वाद्य इस वर्ग में आते हैं।इनमें से मनि, ढोल, ढाक, डमरू, विषम-ढस्को मुख्य ताल वाद्य हैं जिन पर विभिन्न प्रकार के तालों को बजायाजाता है। घम्सा, कारहा, तासा, जुहि-नागरा आदि गोया ताल वाद्य है जिनका उद्देश्य मुख्य ताल वाद्यो कोसहायता प्रदान करना होता है । अत: ये सभी सहायक त्ताल वाद्य हैं। मादर, ढोल; रूप, चानू आदि पार्शवमुखीवाद्य हैं तथा शेष उर्ध्वमुखी है। डमरू, विषम दृढस्की क्रो छोड़ अन्य सभी वाद्य नृत्य के साथ बजाये जाते हैं।