जादो पटिया
संसार के कई देशों में पट -चित्र प्राचीन समय से बनाये जाते रहैं हैं। हमारे देश के विभिन्न भागों में भी पट-चित्र बनाने की परम्परा रही है । जादोपटिया प्राचीन पट-चित्र कथा परम्परा की लोकचित्र कला शेली है। यह शैली मूलत: बंगाल से भी झारखण्ड पंत के संताल परगना में प्रचलित है। इस चित्र शेली बंगाल की पटुआ चित्र शेली से मिलती-जुलती है। ये चित्र एक जाति विशेष "जादो" के लोक कलाकारों द्वारा बनाये जाते हैं। वे इसे वंश परम्परा एवं वंशानुगत व्यवसाय के रूप में बनाते हैं। 'जादो' समुदाय को संताली समाज में पुरोहित का दर्जा प्राप्त है। ये घुमंतू प्रवृति के होते हैं और गॉव के बाहर वास करते हैं। पट-चित्रों की विषय वस्तु पहले संतानों को उत्पत्ति की कथा, संताल समाज के मिथकों पर आधारित कथा हैं राम कथा, कृष्ण, साला, जीवन मरण एवं यमराज का दण्ड विधान होता था, पर बाद के दिनों में पर्व-त्यौहार , महारभारत एवं रामायण पर आधारित कथाएँ भी चित्रित की जने लगीं। इन पट-चित्रों क्रो प्रदर्शित करने की भी एक विशेष शैली है । चित्रों से सबंधित गीत तैयार कर, चित्र प्रदर्शित करने के साथ गीत गा कर चित्रों की व्याख्या की जाती है। छोटे-छोटे कपडों के टुकडे या कागज के टुकडों को " छोड़कर लगभग 6 से 10 फीट लम्बे पट बनाये जाते हैं। हन पर प्राकृतिक रंगों से विषय वस्तु का क्रमबार चित्रण किया जाता है। मुख्यत: लाल, हरा, भूम, मीला, नीला एवं वाले रंग का प्रयोग होता है। ये रंग हल्दी, मुर्गा लकडी, हरे पत्तों के रस, नील एवं एक विशेष पत्थर को घिस कर बनाया जाता है। उसमें बबूल का गोद मिलाकर प्रयोग किया जाता है। चित्रों की आकृतियों सरल, द्वि-आयामी एवं प्रभावशाली होती है | इसी पट-चित्र शैली का एक रूप पटवार चित्र-शैली भी है। जो झारखण्ड के सिहेभूम क्षेत्र में बनाई जाती है।