संग्रहालय

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राज्य संग्रहालय, रांची यूं तो पूर्वी भारत के अग्रगण्य संग्रहालयों में आता है, किंतु यहां के कुछ पुरातात्विक  भारतीय इतिहास के अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतिनिधि हैं जिन पर हमें गर्व है।


काॅपर होर्डः- भारतीय इतिहास में काॅपर होड्र्स का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ताम्राश्मकालीन ये पुरावशेष गंगा घाटी की संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतिनिधि हैं। लाल किला, अंतरजीतखेड़ा सैपई, बहादराबाद इत्यादि स्थलों से पाये गये इन पुरावशेषो की विशेषता है कि ये अधिकांशतः समूह में ही पाये जाते रहे हैं, इसी कारण इन्हें काॅपर होर्ड कहा भी जाता है। इस संग्रह में एन्टेना स्वोर्ड, हारपून, रिंग्स इत्यादि अस्त्र पाये जाते हैं किंतु मानवाकृति (एन्थ्रापोमाॅर्फ) इस संग्रह का सबसे महत्वपूर्ण प्रकार है जो नाम के अनुरूप स्वरूप में मानव आकृति से मिलता जुलता है।

    झारखण्ड में भी काॅपर होड्र्स पाये जाते हैं। पर पूर्वी क्षेत्र में मुख्यतः शोल्डर्ड एक्स ही पाये जाते हैं। जब डाॅ0 हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा उप निदेशक (पुरातत्व) के प्रभार में थे तो उन्होंने एक संचिका में गिरिडीह के उपायुक्त एवं आरक्षी अधीक्षक के पत्र देखे जो 2-3 वर्ष पूर्व ही भेजा गया था, पर जिसपर विभाग द्वारा तब कोई संज्ञान नहीं लिया जा सका था। पत्र में सूचना दी गई थी कि गिरिडीह के बिरनी थानान्तर्गत एक खेत में कृषि  कार्य के दौरान धातु की सात वस्तुएं पाई गई थीं जिनके पुरातात्विक महत्व की ओर भी पत्र में इशारा किया गया था। इसी सन्दर्भ में विभाग से किसी पुरातत्वविद् को भेजने का अनुरोध किया गया था, जिसपर तत्कालीन पुरातात्विक पदाधिकारी द्वारा संभवतः कोई कदम नही उठाया जा सका। मामले के महत्व को समझते हुये तत्कालीन निदेशक श्री अनुराग गुप्ता के माध्यम से अविलम्ब गिरिडीह प्रशासन से सम्पर्क किया गया। पता चला कि सामग्रियां बिरनी थाना के मालखाने में रखी हुई थीं। इस बीच बिहार संवर्ग से डाॅ0 शरफउद्दीन द्वारा झारखण्ड में राज्य संग्रहालय में तकनीकी सहायक/गैलरी सहायक के पद पर योगदान दिया जा चुका था। उन्हें तुरंत गिरिडीह भेजकर संग्रालय के लिये सामग्रियां मंगवा ली गई।

    आज ये 7 शोल्डर्ड एक्स राज्य संग्रहालय, राँची में प्रदर्शित हैं तथा संग्रहालय के प्रदर्शित हैं तथा संग्रहालय के प्रदर्शों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारतीय इतिहास के संदर्भ में इनकी तिथि लगभग 1800 ई0पू0 आंकी जाती है। झारखण्ड में काॅपर होर्ड की पहली खेप वर्ष 1915-16 में हजारीबाग के बारागुन्आ नामक स्थान से आर0 बुश फूट को मिला था। लगभग इस समय जे0 कौगिन ब्राउन को 21 फ्लैट सेल्ट्स राँची के बरतोल नामक स्थान से मिले थे। स्पष्ट है कि झारखण्ड में काॅपर होर्ड संस्कृति के पर्याप्त साक्ष्य मिलते रहे हैं।

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ब्राँज होर्डः- 8 जुलाई 2009 को पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा क्षेत्र में पुरातात्विक अन्वेषण के क्रम में मोहुल डांगरी गांव के शम्भू बेड़ा के पास कांस्य मूर्तिया होने की सूचना प्राप्त हुई। अविलम्ब उक्त स्थल पर जाकर मूर्तियों की जांच की गई। हथेली आकार की 9 ब्राँज मूर्तियों में वृषभ नाथ (3), महावीर (3), चंन्द्र प्रभा (1) अजीतनाथ (1) की मूर्तियां थीं। इन्हें प्राप्त कर संग्रहालय में प्रदर्शित कर दिया गया है। एक राष्ट्रीय क्रय समिति का गठन कर सरकार द्वारा इन मूर्तियों का क्रय किया गया। इन मूर्तियों पर कुछ में 12वीं शताब्दी की लिपि में दानकत्र्ताओ के नाम भी खुदे पाये गये हैं।

हड़प्पन पाॅटरीजः- राज्य संग्रहालय, राँची के उद्घाटन के तुरंत पश्चात् भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेन्ट्रल एन्टिक्विटी सेक्शन से अनुरोध कर देश भर के प्राचीन मिट्टी के बर्तनों के सैम्पल मंगा लिये गये हैं। इनमें हड़प्पा-मोहेन-जोदड़ों, आंध्रा पाॅटरी, एरेटाईन वेयर आदि जैसे बर्तन शामिल हैं, जिन्हें इन्डेक्स पाॅटरी माना जाता है। ये संग्रह भी राज्य संग्रहालय का अनुपम संग्रह है।

    इनके आलावा अनमोल मूर्तियां भी यहां प्रदर्शित हैं जिनमें से कुछ निम्नवत हैः-

अभी पिछले दिनों यहाँ एथेनोलाॅजी सेक्शन भी प्रारम्भ किया गया है जिसमें झारखण्ड की जनजाती परिवारों के बड़े सुन्दर माॅडल्स बनाकर प्रदर्शित किये गये हैं तथा जनजातीय जीवन से संबंधित अस्त्र-शस्त्र एवं वाद्य यंत्र इत्यादि भी प्रदर्शित किये गये हैं जो इस संग्रहालय के अद्भुत प्रदर्शन हैं।

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