अंग लेखन ( गोदना )
गोदना जनजातियों के अंग का एक आभूषणा है जो इन जातियों की पहचान और प्राचीनता की दीर्घकालीन परंपरा है। गोदना की प्रथा धार्मिक आस्था, सौदर्य लालसा और मानवीय आकांक्षाओं पर आधारित है । भारत को अनेक जनजातियों की भाति झारखण्ड में गोदना का प्रचलन आज भी है। गोदना का अर्थ है खोदना इसमे सूई की नोक से त्वचा को छेदित्त कर या गोद कर उसमें सेम अथवा धतूरे जैसे वनस्पति का रस तेल और कालिख में मिश्रित कर उतारे जाते हैं। गोदना के लोकप्रिय डिजाइनों में ज्यामितीय आकृतियों, चन्द्र, सूर्य तथा हाथ-पैर के छापे आदि हैं। गोदना अधिकतर महिलाओं में ही लोकप्रिय है पर पुरुष भी इसमें पीछे नहीं हैं। - जनजातियों की मान्यता है कि मरणोपरान्त पृथ्वी से एकमात्र साक्षी का रूप ये अंग-आलेखन है जो मनुष्य के साथ जाते हैं। इन गोदनों में गोत्र अथवा जाति का गुणचिन्ह भी बनाया जाता है किंतु अब गोदना प्रथा मानवीय भावनाओं, आकांक्षाओं एवं सौन्दर्य का प्रतीक बन गयी है ।