प्रस्तर शिल्प
प्रस्तर शिल्प का इतिहास पाषाणा काल से ही प्रारंभ होता है। झारखंड प्रमुख..: जंगल एवं पहाडों की भूमि है। यहाँ का पाषाणकालीन मानव प्रारंभ से ही पत्थर के महत्व को समझ चुका था । पत्थर के गुणों को परख कर आदिमानव ने विभिन्न प्रकार के पत्थरों का उनके गुणों के आधार पर, विभिन्न प्रकार का इस्तेमाल शुरू किया । झारखण्ड राज्य में प्रस्त शिल्प का कार्य वर्तमान समय में घाटशिला के अतिरिक्त सराइकेला, चांडिल , पलामू एवं दुमका आदि स्थानों पर चल रहा है। पत्थर की देवी-देवताओं क्री मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य उपयोगी वस्तुओं में सिल-बट्टा, जीव-जन्तुओं क्री मूर्तियाँ, सरल-मूसल, ब्वेलना-चकला आदि का निर्माण प्रमुखता से हो रहा है। प्राचीन कालों की बनी हुई पत्थर की मूर्तियों से सारा राज्य पटा हुआ है। टांगीनाथ, चांडिल तथा सिंहभूम जिलों के अनेक स्थानों से प्राचीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं तथा प्राप्त होती रहती है।