कंवर
परिचय : झारखंड में कंवर को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में 31 वे स्थान पर २००३ इ. में विधि-न्याय मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा 8 जनवरी 2008 को भारत गजट में प्रकाशित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आर्डर (संशोधन) एक्ट २००२ के तहत सम्मलित किया गया । इसी के अनुसार कोल को 32बी अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल किया गया | झारखंड में निवास करने वाले कंवर मूलत: मध्य प्रदेश में रहने वाले कंवर के ही अंग है। अभी भी मध्य प्रदेश में इनकी जनसंख्या सर्वाधिक है। 1981 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या मव्य प्रदेश से 5,62,998 है। कुमार सुरेशा ने अपनी पुस्तक में इस संख्या को 5,62,200 ही बतलाया है। 'कंवर अपना उदूगम महाभारत के कौरव से बताते हैं। एक परंपरा के अनुसार महाभारत के युद्ध में कौरव की पराजय के बाद दो गर्भवती महिलाएँ भाग कर छतीसगढ़ महानदी के उत्तर के पहाड़ी क्षेत्र में आ गई और एक ने एक चरवाहे तथा दूसरे ने एक धोबी के घर में शरण ली । यहॉ उन लोगों ने एक लड़के और एक लड़की को जन्म दिया। वे ही इस जनजाति के पूर्वज बने। इस प्रकार कंवर कौरवों के उत्तरजीविर्यो के वंशज हैं ।ऋजिले (1891) ने भी कंवर को कौरवों के वंशज के रूप में मानते हुए उनका वर्णन किया है। उन्होंने कंवर की पांच उपजातियों- चेती ,चेरवा, दुआ, पैकर और रोतिया कवर बताई हैं। प्रजातीय दृष्टि से कंवर को प्रोटो-आरट्रेलायड बर्ग से रखा गया है। इनकी त्वचा का रंग वाला, नाक चौडी, होठ मोटे, मुख चौडा, कद छोटा, वाल काले, सीधे व खुरदरे मुछ-दाढी कम होती है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का कद डेढ दो इंच कम होता है। डॉ. कुमार सुरेश के अनुसार कवर मध्य प्रदेश के छतीसगढ़ के सीदार के निवासी हैं। वे भी उनकी उत्पत्ति कौरवों से मानते हैं। त्रिवेदी भी 'कंवर' को कौरव का अपमंश मानते हैं। उनके अनुसार ये रतनपुर के नागवंशी राजा के विश्वासी सैनिक थे। प्राकृतवास : एक बड़ी जनजाति हैं जो मुख्य रूप से रायगढ़ सरगुजा, रायपुर, राजनंदगाँव में पायी जाती है। झारखंड में इसके दक्षिणी पश्चिमी सीमावर्ती जिलों जैसे- गुमला, सिमडेगा व पलामू में कवर पाये जाते हैं । २००१ की जनगणना के अनुसार इनकी कुल संख्या 10000 है। डुमरी, चैनपुर और कुरडेग प्रखंड में इनका संकेन्द्रण है। इनके गाँव जंगली-पहाड़ी क्षेत्र में बसे हुए हैं। सिमडेगा - कुरडेग से गुमला या मध्य संदेश जाने वाली सड़को के किनारे भी इनके छिटपुट गाँव मिलते हैं। गुमला, सिमडेगा और पलापू जिले में कंवर के लगभग 1356 परिवार बिखरे ।जिनकी आबादी 10,000 से ऊपर है। कंवर मिले -जुले गाँव में अन्य लोगों के साथ -साथ या अलग टोले में रहते हैं। जिसे कंवर टोला कहा जाता है। उड़ीसा से अभी भी इनका अधिक संपर्क रहता है क्योंकि उड़ीसा में भी कंवर पाये जाते हैं। 1981 की जनगणना के अनुसार उड़ीसा में इनकी संख्या 8549 तथा महाराष्ट्र में 20231, है। कंवर को उड़ीसा और मध्य प्रदेश में पहले से ही अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। किन्तु बिहार में इन्हे पिछडी जाति एनेक्सर में सूचीबद्ध किया गया है। झारखण्ड में अब ये अनुसूचित जनजाति की सूची में सम्मिनित कर लिये गये हैं । घर - घरेलु सामान : इनके घर मिट्टी के बने होते है। छप्पर खपरैल या फूस की होती है| घर में एक…दो कमरे होते हैं। बरामदा भी होता है। एक दरवाजा तो होता है, किन्तु खिडकी या रोशनदान बिलकुल नहीं होता । किसी-किसी का बडा मकान होता है। घर में सामान बहुत कम और साधारण होते हैं। एकाध खाट, पीढा, मचिया, चटाई, मिट्ठी के या एल्युमीनियम के बर्त्तन पाये जाते हैं। कुछ स्टील के बर्त्तन भी मिलते हैं। शिकार के लिए तीर धनुष रखते हैं पर दक्ष शिकारी नहीं हैं। मछली मारने के लिए कुमानी या छोटा जाल भी घरों में देखने को मिलता है। कुदाल, गुलाबी, झाड़ू ,सुप , टोकरी , गैंती, खुरपी आदि मुख्या मुख्या घरेलु सामान हैं। वेशभूषा : इनका पहनावा सस्ता और साधारण होता है। पुरुष मोटी धोती, गंजी, अंगा, गमछा, का प्रयोग करते हैं। औरतें साड़ी और कभी-कभी ब्लाउज़ भी पहनती हैं। गोदने का प्रचलन है। किन्तु इस पर विशेष जोर नहीं है। आभूषण का शौक तो है इनकी महिलाओ में, किन्तु कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कुछ सस्ती घातुओं के गहने का प्रयोग करती है| फूल - पट्टी भी श्रृंगार के साधन है | भोजन : ये मांसाहारी होते हैं किन्तु मांस मछली कभी कभी ही खाने को मिलता है। खाने के लिए मछली पकड़ते है, उसे बेचते नहीं हैं। चावल और मोटे अन्न मुख्य भोजन है। जंगलों से साग-पात, कएंड - मूल, फल फूल लाकर भी खाते हैं।