परहिया
परहिया झारखण्ड की एक लघु जनजाति है। इसकी परिगणना यहाँ की आठ आदिम जनजातियों में होती है। ये पलामू की पहाड़ियों में पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। इनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। हंटर ने परहिया को बिरहोर समेत सबसे उद्धम-उदंड जनवर्ग के रूप में बतलाया है। डाल्टन ने इन्हें किसी महान जनजाति का अवशेष माना है जो मूल रूप में घुमक्कड़ जाति थी। डाल्टन ने इन्हें तुरानी आकृति वाली जनजाति कहते हुए यह भी लिखा है कि ये सादरी-मगही मिश्रित हिन्दी बोलते हैं। हरिमोहन एक किंवदंती उद्धृत करते हुए परहिया और कोरवा की उत्पत्ति शिव-पार्वती से दर्शाते हैं जो इस प्रकार है “शिव पार्वती ने दो काक-भगौंड़े को देखा तो एक जंगल में भाग गया वह परहिया कहलाया तथा दूसरा पार्वती की गोद में उछल गया, वह कोरवा कहलाया।” ऐसा भी कहा जाता है कि परहिया नाम पठार से बना किन्तु यह पाणिनी के वर्ण-विपयर्य सिद्धांत से मेल नहीं खाता। परहिया लोक-कथा से यह संदेश मिलता है कि ये शिव क वंशधर हैं।