बथुड़ी
परिचय बथुड़ी झारखंड की एक लधु जनजाति है, जिसकी कुल जनसंख्या तीन हजार से भी कम है। ये मुख्यत: धालभूम की पहाड़ी श्रृंखलाओं और स्वर्णरेखा नबी के तट पर बसे हुए हैं। ये अपनी उत्पत्ति ब्रहा की पूजा से मानते हैं। ये वेरी, बागदीस और भुई/भुइया के पूर्वज कहे जाते हैं। इनके पास भूमि होती है इसलिए भूमिज कहे जाते हैं। ये सरदार या मुंडा उपाधि भी धारण करते है। ये मुंडारी बालते हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार बथुडी की कूल जनसंख्या 2645 है। इनका वितरण निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है। तालिका- 1 (बथुड़ी का वितरण - 4994) झारखंड के अलावे बयुडी उड़ीसा में पाये जाते हैं, जिसकी चर्चा रिजले और शरतचंद्र राय ने की है। उड़ीसा में इनकी संख्या डेढ़ लाख से ऊपर है। रिजले लिखते है कि "बथुड़ी एक छोटा आदिम जनजाति समूह है, जिनकी उत्पत्ति अनिश्चित है।" मयूरभंज के बथुड़ी का अध्ययन करते हुए राय निष्कर्ष निकालते हैं कि " ये हिंदुओं के गोरे प्रभाव में आ गये हैं और विवाहादि अवसरों पर ब्राह्मणों की सेवा स्वीकारते हैं। झारखंड में सिंहभूम ही इनका मुख्य निवास-स्थान है। घालमूम के बथुड़ी अपने जाप को क्षत्रीय मानते हैं और जनजाति या आदिवासी कहलाना पसंद नहीं करते ।
जिला
जनसंख्या
पू. सिंघभूम
1474
पू. सिंघभूम + सराइकेला
225
राँची
27
लोहरदगा
1
गुमला+सिमडेगा
324
साहेबगंज + पाकुड़
57
दुमका + जामताड़ा
285
गोड्डा
10
पलामू + गढ़वा+ लातेहार
73
हजारीबाग, चतरा कोडरमा
140
धनबाद, बोकारो + गिरिडीह
89