राजमहल
संतालपरगना को पहले जंगल तराई या राजमहल जिला के नाम से पुकारा जाता था। 1592 ई० में राजमहल को बंगाल की राजधानी का गौरव प्राप्त हुआ। पहले राजमहल को आगमहल के नाम से भी जाना जाता था। मानसिंह ने इसका नाम बदल कर राजमहल किया। सम्राट अकबर के प्रतिनिधि बनकर मानसिंह ने यहाँ किला और महल का निर्माण करवाया था। 1608 ई० में नबाब इस्लाम खाँ ने इसे राजधानी हटाकर ढ़ाका में स्थापित की। जहाँगीर के विरूद्ध शाहजहाँ ने विद्रोह किया और बंगाल पर आक्रमण किया तो सुबेदार इब्राहिम खाँ ढाका से राजमहल की ओर आक्रमण का सामना करने के लिए बढ़ा। तेलिया गढ़ी में घमासान युद्ध हुआ जिसमें शाहजहाँ विजयी हुआ। 1639 ई० में शाहजहाँ का पुत्र शाहशुजा जब बंगाल का सूबेदार बना तब राजमहल पुनः बंगाल की राजधानी बनने की महिमा से मण्डित हुआ। 1660 ई० तक यह नगरी राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित रही। मीर जुमला के नेतृत्व में मुगल सेना से जब शाहगुजा पराजित हुआ तब राजधानी भी ढाका हस्तान्तरित हो गई। फिर भी टकसाल एवं व्यापारिक केन्द्र के रूप में इसका महत्व बना रहा। यहाँ मीर जाफर के पुत्र मीरन, जिसने सिराजुदौला की हत्या की थी। मुगलकालीन कई पुरातात्विक अवशेष यहाँ पर हैं।