किसान
परिचय : विष्णु भक्त । त्रेता युग में चार वंशों का जिक्र मिलता है जिनमें सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी की 'प्रधानता हैं |चंद्रवंशी राजा मान्धाता झारखंड की एक अनुसूचित जनजाति है। किसान इनका - असली नाम नहीं है। ये अपने को 'नगेशिया' किसान कहते हैं। प्रारंभ से ही ये खेती-वारी के काम में बहुत मेंहनती थे। इसीलिए इनकी पहचान 'किसान' के रुप में बनी । जो करे किसानी, वह किसान, किन्तु इनका मूलनाम नगेशिया ही है। पि. बर्न (1901) ने लिखा है कि कृषि-कार्य में मेंहनती होने के कारण ही राजा लक्ष्मण सिंह ने इन्हें किसान' नाम दिया । डाल्टन के अनुसार किसान पाडवीं के वंसज है| ट्रीअलव्यय हूबीलर ने भी इसका समर्थन किया है कि पांडवों द्वारा बहिस्कृत होकर ये जंगलों में शरण लिये । किसान की उत्पत्ति के संबंध में कई मत हैं, अनेक विचार है। किसान की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई मत है अनेक विचार है| इनकी उत्पत्ति कुछ लोग नागवंश से मानते हैं और 'नगेशिया' नागवंश का ही बिगड़। रुप माना जाता है।सतयुग में हँस, नाग और गरूर जाति का उल्लेख मिलता है किन्तु नाग और गरूर जाति (वंश) ,की ही प्रधानता थी । गरुड़ वंश विष्णु से और नागवंश शंकर से संबंधित माना जाता है। नागवंश वाले शिव-उपासक थे और गब्बवंशो और पातालपुरी की वासुकि नाग कन्या के मेंल से नागवंशी उत्पन्न हुए -ऐसा भी जिक्र मिलता है। इन्ही मूल वंशों से अनेक कुलों एवं शाखाओं का मै विकाश हुआ ।झारखंड में नागवशियों का राज्य सन् 64 से शुरु हुआ । मुगलकाल में इन आक्रमण हुम । उस संकट-काल में अपने बचाव के लिए नाम -पहचान बदल -कर ये 'किसान' वन गए और अन्य जनजातियों एवं पिछडी जातियों के साथ रहने लगे । 'किसान-जाति-वश परिचय' (योगेश्वर पांडेय द्वारा लिखित) पत्रिका में इनका "लेखा मिलता है। ये अपने को मध्य प्रदेश का मूल निवासी मानते हैं और वहीं से ये पलामू में आये | अ|ज भी किसान जनजाति झारखंड पठार के अलावे मध्य प्रदेश के सुरगुजा – छेत्र पायी जाती है| आर्थिक व्यवस्था : किसान मुख्यत: कृषक है, पर जंगलों से भी जुड़े है। आर्थिक जीवन में जंगल की महत्वपूर्ण भूमिका है। ये कई तरह की फसलें उगाते हैं। उत्पादन मुख्य नगदी फसल है। जंगल से लकड़ी, शहद, पन्त-ग्नक्का, कंद-मूल , साग की संग्रह करते हैं। जंगल से छाल लाकर रस्सी बनाते है। इन सभी चीजों का घरेलू उपयोग होता ही है, कभी कुछ बेचते भी हैं। इनके पूर्वज लोहा गलाने तथा कृषि-यंत्र एवं घरेलु उपयोग तो होता ही है सामान बनाने का काम भी करते थे, किन्तु अव इस व्यवसाय को बिल्ड्स छोड़ चुके हैं | कुछ छोटे घरेलू उद्योग अभी भी चलाते है। आकस्मिक श्रमिक के रुप में भी काम करके कमा लेते हैं। कभी शिकार करते हैं और खाते हैं। भौतिकसंस्कृति : घर - ये स्थायी रूप से बस गए हैं। इसलिए इनके घर मजबूत और टिकाऊ पदार्थों से बने होते हैं। एक गाँव में प्राय: 8-१० घर होते हैं। दीवार मिट्टी की होती है और छप्पर खपरैल या फूस का होता है। छप्पर में मजबूत लकड़ियों का प्रयोग होता है। घर प्रायः : आयताकार होते हैं। इनमें दो से चार कमरे तक होते हैं। कमरे एक दूसरे से जुड़े रहते है। एक कोने में रसोई-स्थान होता है जहाँ मिट्टी का चूल्हा बना होता है। बाहर किनारे तक छेक कर मवेशियों को रखने का स्थान बनाया जाता से । पक्का घर बहुत कम मिलता है| घर में दरवाजा होता है, पर खिड़की नहीं होती । दरवाजे के पास सटे स्थान में बखोर होता है जहाँ सूअर रखे जाते हैं ।