चेरो
चेरो एक प्राचीन जाति है। इसे झारखण्ड में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। चेरो को चेरन या चेरवा भी कहा गया है। पलामू में इन्हें “बारहहजारी” कहते हैं, जैसे, खरवार को “अठारह हजारी” जुकारते हैं। ऐसा कहने के पीछे कारण यह बताया जाता है कि जब भागवत राय ने पहले परगना पर बब्जा किया तो उनकी सेना में 12000 चेरो और 18000 खरवार शामिल थे। इसी संख्या के आधार पर इन्हें यह नाम दिया गया ।
चेरो की उत्पत्ति के सम्बन्ध में चेरो द्वारा कथित एक किवदंती है जिसके अनुसार बंुदेल खण्ड के घूरगुमती के राजा की एक मात्र कन्या थी जिसकी कुण्डली देख कर किसी ब्राह्मण ने बताया कि उसकी शादी किसी मुनि से होगी ं यह जानकर राजा अपनी पुत्री को साथ लेकर मन में यह संकल्प करके चले कि जिस मुनि से सबसे प्रथम भेंट होगी, उसी को कन्या सौंप देंगे। कुमांयू के मोरंग प्रदेष से गुजरते हुए उन्हें एक टीला दिखाई दिया। वस्तुतः यह टीला एक तपस्यारत मुनि के चारों ओर घेरकर बाल्मीकियों ने बना दिया था। राजा ने टीले को साफ कर मुनि को बाहर निकाला और अपनी पुत्री को उन्हें सौंप कर लौट गए। इसी दम्पत्ति से चेरो या चैहान वंशी राजपूतों की उत्पत्ति हुई ये अपने को चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहते हैं।